अरविन्द तिवारी की रिपोर्ट
बिलासपुर – भारतीय संस्कृति में नृत्य की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसे भारत ही नहीं बल्कि विश्व के सभी उन्नत देश अपना रहे है। शास्त्रीय संगीत व में कत्थक कला का विशेष स्थान है। ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो कला को समर्पित होते हैं और ऐसे कलाकारों की कला देखने का अवसर भी बड़े भाग्यशाली लोगों को मिलता है।
उक्त बातें उभरती कत्थक नृत्यांगना कु० स्नेहा शर्मा ( इक्कीस वर्षीया) ने पत्रकार वार्ता में अरविन्द तिवारी से संक्षिप्त चर्चा करते हुये कही। पारिवारिक स्थिति के बारे में उन्होंने बताया कि वे मुंगेली (धरमपुरा) निवासी प्रेमलता सतीष शर्मा के दो पुत्रियों में छोटी है , इनकी मम्मी सफल गृहणी हैं जबकि पापा शिक्षा विभाग में लिपिक हैं। बचपन से ही डांस , खेलकूद और पेंटिंग में विशेष रूचि होने के कारण बारहवीं कथा की पढ़ाई के बाद इन्होंने खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से कत्थक में चार वर्ष तक डिग्री पढ़ाई की। वहां से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे अभी आनलाईन और आफलाईन कत्थक प्रशिक्षण देने की तैयारी में लगी हुई हैं। कत्थक के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि भारत के आठ शास्त्रीय नृत्य रूपों में से एक , कत्थक एक अभिव्यंजक और लयबद्ध कला रूप है जो कहानी कहने , पैरों की हरकतों और सुंदरता को खूबसूरती से जोड़ता है। इसके आकर्षण और प्रामाणिकता में योगदान देने वाले विभिन्न तत्वों में घुंघरू (पैर की घंटियाँ) का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। कला प्रदर्शन के बारे में पूछे जाने पर इन्होंने बताया कि ये कई जगहों पर अपनी कत्थक कला का प्रदर्शन धूम मचा चुकी हैं और सम्मानित भी हो चुकी हैं। भविष्य के बारे में पूछे जाने पर उन्होनें बताया कि आगे चलकर वे स्वयं एकेडमी खोलने के इच्छुक हैं। वे कहती हैं कि जिस प्रकार से अभी मुझे मेरे गुरू आग बढा रहे हैं , उसी प्रकार से एकेडमी खोलकर मैं भी अपने शिष्यों को आगे बढाऊंगी। वे नृत्य कला कत्थक और गायन के क्षेत्र में आगे बढ़कर प्रदेश का नाम रोशन करना चाहती हैं।
